छोटे उद्योगों को समर्थन क्यों और कैसे

छोटे उद्योगों को समर्थन क्यों और कैसे


 


नोटबंदी और जीएसटी के लागू होने के बाद छोटे उद्योगों की परेशानियाँ बढ़ी हैं। इन कदमों से उनकी पूर्व से ही बढती हुई परेशानियों आगे बढ़ी हैं। छोटे उद्योगों के मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2014 में देश के कुल उत्पाद में छोटे उद्योगों का हिस्सा 29.8 प्रतिशत था जो 2016 में घटकर घट कर 28.8 प्रतिशत हो गया था। जीएसटी तथा नोटबंदी के बाद यह गिरावट और तीव्र हुई है ऐसा हम समझ सकते हैं। छोटे उद्योगों की इन बढती समस्याओं का मुख्य कारण आधुनिक तकनीके हैं। आटोमेटिक मशीनों से बने माल की उत्पादन लागत कम पड़ती है। जैसे आधुनीक कपड़ा मिल में बनाया गया कपड़ा सस्ता पड़ता है जबकि हथकरघा द्वारा बनाया गया कपड़ा महंगा पड़ता है। इसलिए उपभोक्ता की दृष्टि से आटोमैटिक मशीनों को बढ़ावा देना उचित लगता है। यही कारण है कि छोटे उद्योगों की परिस्थिति बिगड़ रही है। फिर भी छोटे उद्योगों को संरक्षण देने का आर्थिक कारण बनता है। मन लीजिये 1 लाख मीटर कपड़ा बुनने में कपड़ा मिल में 100 रोजगार बनते हैं जबकि हथकरघे से उतने ही कपड़े को बनाने में दस हजार रोजगार बनते हैं। ऐसे में यदि हथकरघों को समाप्त करके वह कपड़ा कवेल कपड़ा मिल से बनाया जाएतो 9900 बुनकर बेरोजगार हो जायेंगे। सरकार को इन बेरोजगारों पर कल्याणकारी खर्च बढाने होंगे जैसे मनरेगा अथवा इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत । अतरू कपड़ा मिल से उपभोक्ता को सीधे सस्ता कपड़ा मिलेगा लेकिन साथ ही कल्याणकारी खर्च बढ़ने से उसके उपर टैक्स का बोझ भी बढ़ेगा। अंततरू उपभोक्ता को शयद लाभ न हो। इसलिए पहले बुनकरों को बेरोजगार बनाकर फिर उनके उपर कल्याणकारी खर्च करने से बेहतर हो सकता है कि हम उन्हें सीधे संरक्षण दें और कल्याणकारी खर्चे के टंटे में न पड़े। छोटे उद्योगों को संरक्षण देने का दूसरा आधार उद्यमिता के विकास का है। धीरुभाई अम्बानी जैसे महान उद्योगपति किसी समय छोटे उद्योग चलाते थे। यदि छोटे उद्योगों को संरक्षण नहीं दिया जाता तो धीरू भाई जैसे लोग कोई उद्यम शुरू कर ही नहीं पाते और उनकी उद्यमिता का विकास नहीं होता। जिस प्रकार छोटे बच्चे को संरक्षण देकर बड़ा किया जाता है उसी प्रकार छोटे उद्योगों को संरक्षण देकर देश की उद्यमिता का विकास किया जाता है। उद्यमिता के विकास से देश में उत्पादन बढ़ता है, माल की उत्पादन लगत कम होती है और उपभोक्ता को सस्ता माल मिलता है। इस प्रकार यदि छोटे उद्योगों को संरक्षण दिया जाये तो उपभोक्ता का कांटा बराबर बैठ जायेगा। इन कारणों से छोटे उद्योगों को समर्थन देना चाहिए इस बात के बावजूद कि उनकी उत्पादन लागत ज्यादा आती है। प्रश्न है कि अब छोटे उद्योगों को यह संरक्षण दिया कैसे जाए? पहला उपाय है कि पूंजी सघन और श्रम सघन उद्योगों पर अलग अलग दर से जीएसटी तथा इनकम टैक्स आरोपित किया जाये। जैसे मान लीजिये आज कपड़े पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगाई जाती है। यह दर छोटे और बड़े उत्पादकों पर एक सामान रहती है। ऐसे में सरकार व्यवस्था कर सकती है कि श्रम सघन कपड़ा उत्पादकों पर जीएसटी की दर घटा कर 5 प्रतिशत कर दे और बड़े कपड़ा उत्पादकों पर जीएसटी की दर बढ़कर 18 प्रतिशत कर दे। ऐसा करने से समग्र कपड़ा उद्योग पर जीएसटी की दर पूर्ववत लगभग 12 प्रतिशत रहेगी लेकिन उत्पादकों में श्रम सघन छोटे उत्पादकों को राहत मिलेगी। उनका उत्पादन बढ़ेगा क्योंकि वे बड़े उत्पादकों का सामना कर सकेंगे। छोटे उद्योगों का धंधा चल निकलेगाजिससे उपर बतये गये लाभ अर्थव्यवस्था को हासिल होंगे। इस फर्मुले में समस्या यह है कि बड़े उत्पादकों द्वारा कपड़े के निर्यात की लागत ज्यादा आएगी क्योंकि उन पर 18 प्रतिशत जीएसटी आरोपित होगी। इसका उपाय यह है कि उन्हें कुछ रकम निर्यात सब्सिडी के रूप में दे दी जाये जिससे कि निर्यात प्रभावित न हों। छोटे उद्योगों को समर्थन देने का दूसरा उपाय जीएसटी के अंतर्गत कम्पोजीशन स्कीम में परिवर्तन करने का है। वर्तमान में छोटे उद्योगों पर केवल 1 प्रतिशत जीएसटी देय होती है। लेकिन इसमें समस्या है कि छोटे उद्योगों द्वारा कच्चे माल की खरीद पर जो जीएसटी अदा की जाती है उसका रिफंड नहीं मिलता है। जैसे एक बड़े उद्यमी ने अस्सी रुपये का कच्चा माल खरीदा और उस पर 12 प्रतिशत की दर से जीएसटी अदा किया। 20 रुपये की उसने वैल्यू एड की और यह रकम जोड़ करके उसने 100 रुपये में उस माल को बेचा जिस पर 12 प्रतिशत यानि 12 रुपये उसने जीएसटी अदा की और खरीददार को कुल 112 रुपये में इस माल को बेचा। अब खरीददार ने इस 112 रुपये में 12 रुपये का जीएसटी का रिफंड प्राप्त कर लिया और उसकी शुद्ध लागत केवल 100रुपये आई। इसकी तुलना में अब छोटे उद्यम की स्थिति को समझें। छोटे उद्यमी ने भी 80 रुपये में कच्चे माल को खरीदा उस पर 12 प्रतिशत की दर से 9.60 रुपये 60 पैसे जीएसटी अदा की और 20 रुपया उत्पादन खर्च जोड़कर उसकी शुद्ध लागत 109.60 पड़ी। इसमें 1 प्रतिशत से उसने जीएसटी अदा की और कुल 110.60 रुपये में इस माल को बेचा। परन्तु उसके द्वारा बनाये गए माल को खरीदने वाले को जो 10.60(9.60 एवं 1 रुपए) की जीएसटी छोटे उद्यमी ने अपने कच्चे माल पर अदा किया था वह रिफंड नहीं मिलता है। इसलिए छोटे उद्यमी से खरीदने पर खरीददार को कुल 110.60 रुपये अदा करने पड़ते हैं। इससे स्पष्ट होगा कि वर्तमान व्यवस्था में बड़े उद्यमी से ६ माल खरीदने पर लागत 100 रुपये आती है जबकि छोटे उद्यमी से उसी माल को खरीदने पर लागत 110.60 रुपया आती है। यही कारण है कि छोटे उद्यमी दबाव में आ रहे हैं। इसका उपाय यह है कि छोटे उद्यमियों को अपने कच्चे माल पर अदा किये गये जीएसटी का नगद रिफंड देने की व्यवस्था की जाए।