तस्वीर अभी धुंधली है!

तस्वीर अभी धुंधली है!



मैंने विगत विधानसभा चुनावों के दौरान भी 20 नवंबर को दूसरे चरण में ग्यारह विधानसभा क्षेत्रों का भ्रमण किया था। उस दिन मेरा आकलन था कि कांग्रेस प्रचंड बहुमत से जीत रही है। अपना अनुभव मैंने यूट्यूब पर देशबन्धु के ही चौनल डीबी लाइव पर तथा अन्यत्र खुलकर व्यक्त किया था। इस बार स्थिति कुछ भिन्न थी। पिछले कई दिनों से लगातार विरोधाभासी समाचार आ रहे थे। कांग्रेस-भाजपा के नेता भले ही हार-जीत के अपने-अपने दावे कर रहे थे, किंतु अन्य कोई व्यक्ति पक्की राय देने की स्थिति में नहीं था। मात्र पांच माह के भीतर यह एक आश्चर्यजनक बदलाव था। मैंने सोचा कि एक लंबा क्षेत्र भ्रमण करने से शायद यह धुंधली तस्वीर साफ हो जाएगी, लेकिन ऐसा हो न पाया। इसलिए कोई भविष्यवाणी करने की जोखिम उठाने के बजाय बेहतर बलौदाबाजार में दोपहर ढाई-तीन बजे के बीच होगा कि जो देखा उसकी एक झलक सामने रख दें, महिलाओं की लंबी कतारें लगी हुई थीं। कसडोल के जिसके आधार पर पाठक स्वयं अपनी राय कायम कर एक गांव में दो बजे तपती धूप में एक महिला अपनी सके चारों लोकसभा क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवार का बेटी के साथ स्कूटी पर बैठ वोट डालने आई। बिल्हा में कोई नामलेवा नहीं मिला। पाटन क्षेत्र के एक गांव में एक दूकान पर कुछ महिलाएं मिलीं। कुछ बताने में भाजपा कार्यकर्ताओं के सामने जब मैंने उनके प्रत्याशी सकुचा रहीं थींदुकानदार के आश्वस्त करने पर कि प्रेस विजय बघेल का नाम लिया तो उनका तत्काल जवाब रिपोर्टर हैं, उन्होंने संकेत से कांग्रेस को वोट देना बता था कि चुनाव मोदीजी लड़ रहे हैं। भाटापारा क्षेत्र के दिया। यात्रा के बीच तमाम गांवों-कस्बों में अधिकतर नारायणपुर ग्राम में एक युवा को कार में लिफ्ट दी तो किसान कांग्रेस के वायदा निभाने से खुश नजर आए। उसने बताया कि वह मोदीजी के लिए वोट देकर लौट कर्जा माफ, समर्थन मूल्य, धान का बोनस- इन सबके रहा है। क्यों पूछने पर उत्तर था कि उन्होंने विदेशों में प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया सुनने मिली। एक कस्बे में घूम-घूमकर भारत की छवि बनाई है जिसका लाभ अब भाजपा के ही एक युवा कार्यकर्ता ने कहा- अंकल! मिलना शुरू होगा। कुछ अन्य मतदाताओं का कहना था बहत्तर हजार के वादे का यहां बहुत असर हुआ है। कि मोदीजी जैसा स्ट्रांग लीडर देश को चाहिए। इस आपके-हमारे लिए यह छोटी रकम है, लेकिन गरीब के तस्वीर का दूसरा पहलू था कि अधिकतर स्थानों पर लिए बहुत बड़ी है। एक गांव से दूसरे गांव जाते-जाते भाजपा के कार्यकर्ता नदारद थे। रायपुर के मेरे केंद्र पर मैं प्रदेश के अन्य इलाकों में भी अपने सहयोगी पत्रकारों मुझे एक भी भाजपाई नेताकार्यकर्ता के दर्शन नहीं हुए। व परिचितों से मोबाइल पर ताजा स्थिति जानने में लगा एक कस्बे में भाजपा के समर्थक बूथ पर मौजूद रहने के हुआ था। लौटते वक्त नांदघाट में शाम की चाय पीते बजाय बाजार में इत्मीनान से बैठक जमाए मिले, पूरे हुए जानकारी मिली कि भाटापारा के अंतर्गत इस तरफ रास्ते में इक्का-दुक्का स्थानों पर ही मतदाता भाजपा के भाजपा का जोर है। कुछ देर बाद एक अन्य सूत्र से स्टाल पर परची लेते हुए दिखे जबकि कांग्रेस के स्टालों मालूम हुआ कि भाटापारा में ही निपनिया की ओर पर वोटरों का आना-जाना लगा हुआ था। वैसे तो सभी कांग्रेस को भारी समर्थन मिला है। एक तरह से वर्गों के मतदाताओं में उत्साह थादेखकर अच्छा लगा भाटापारा पूर्व और भाटापारा पश्चिम जैसा विभाजन कि महिलाओं ने मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। सामने आया बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र के तहत सुनने बाद भारत कितनी परत मिला कि भाजपा के अरुण साव को उनके गृहक्षेत्र मुंगेली में बढ़त मिल रही है, जबकि तखतपुर में बराबरी की टक्कर और बिलासपुर में कांग्रेस के अटल श्रीवास्तव के पक्ष में स्थिति होने की सूचना मिलीलोरमी के बारे में सुना कि जोगी कांग्रेस के धर्मजीत सिंह बसपा का साथ दे रहे थे, लेकिन कार्यकर्ताओं को नाखुश जानकर तटस्थ हो गए।जोगी कांग्रेस से बहुत से नेता कांग्रेस में लौट आए हैं। इसका लाभ कांग्रेस प्रत्याशियों को मिल रहा है, यह चर्चा बलौदाबाजार, भाटापारा, बिल्हा, कोटा आदि में आम है। विधायक प्रमोद शर्मा खुलकर कांग्रेस का साथ दे रहे थे, वैसे ही सियाराम कौशिक व चौतराम वर्मा भी। यह भी सुना कि कोटा में श्रीमती रेणु जोगी के कार्यकर्ता भी कांग्रेस के पक्ष में काम कर रहे हैं। अगर ऐसा हुआ है तो इसमें आश्चर्य करने की कोई बात नहीं है। प्रदेश की ग्यारह में सिर्फ एक जांजगीर सीट पर ही सही मायने में त्रिकोणीय मुकाबला थायहां बसपा के दाऊराम रत्नाकर और कांग्रेस के रवि भारद्वाज के बीच कड़े संघर्ष की स्थिति बताई गई, जबकि भाजपा के गुहाराम अजगले को बाहरी प्रत्याशी करार कर दिया गया है। इस लोकसभा क्षेत्र में बसपा की स्थिति जांजगीर जिल में बेहतर बताई जाती है, जबकि जैसा मुझे प्रतीत हुआ बलौदाबाजार जिले में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है। इस बीच विधानसभा क्षेत्रवार मतदान के आंकड़े आ चुके हैं, लेकिन वे किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद नहीं करतेइसलिए कि किसी भी लोकसभा क्षेत्र में मतदान के स्वरूप में एकरूपता नजर नहीं आई। नगरीय इलाकों में मतदान का प्रतिशत कम है, ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकय लेकिन युवाओं की हिस्सेदारी कितनी रही और महिलाओं की कितनी, मध्यमवर्ग की कितनी और कृषक-मजदूरों की कितनी, जैसे परतदर-परत विश्लेषण से ही सही स्थिति पता चल पाएगी। अभी इतना कहना होगा कि भाजपा के अपने कार्यकर्ता कांग्रेस को ग्यारह में से न्यूनतम चार सीट और अधिकतम सात सीट दे रहे हैंयाने उनकी निगाह में ही कांग्रेस की स्थिति 2014 की बनिस्बत कार्फ सुधरी है। भूपेश बघेल के स्वयं किसान पुत्र होने का फयदा भी ग्रामीण अंचल में कांग्रेस को मिलता दिखाई दे रहा है। बाकी तो अठ्ठाइस दिन बाद स्थिति स्पष्ट हो ही जाएगी।