प्रयागराज। मुंशी प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में उत्तर मध्य रेलवे के मुख्यालय में महाप्रबंधक राजीव चौधरी की अध्यक्षता में साहित्यिक संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी में महाप्रबंधक, राजीव चौधरी ने कहा कि हमारी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति सबसे बड़ी धरोहर है और इसके साथ आंतरिक जुड़ाव एवं लगाव होना चाहिए। प्रेमचंद भारतीय समाज और उसके यथार्थ के सबसे बड़े कलमकार हैं। उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों में समाज के सभी वर्गों, विशेष रूप से निम्न मध्य और निम्न वर्ग, किसान, मजदूर आदि के सुख-दुख का जो चित्रण किया है, वह विश्वस्तरीय साहित्य का अमूल्य हिस्सा है। नि:संदेह प्रेमचंद, विश्व साहित्य में भारत के वास्तविक प्रतिनिधि हैं। उन्होंने समाज और परंपरा में व्याप्त विसंगतियों और विडंबनाओं के बीच जीने वाले आमजन को नायक का दर्जा दिया। प्रेमचंद खुद उन्हीं विसंगतियों और विषम परिस्थितियों से गुजरे थे। इसलिए उनका लेखन सामाजिक और आर्थिक सच्चाइयों का सटीक चित्रण करता है। प्रेमचंद का साहित्य इसलिए सबसे प्रासंगिक है कि आज भी किसानों को मजदूर बन जाने की क्रूर बिडंबना का शिकार होना पड़ रहा है। चौधरी ने कहा कि उत्तर भारत का रंग-रूप और रहन-सहन देखना हो तो प्रेमचंद को पढ़ना चाहिए।
इस मौके पर मुख्य राजभाषा अधिकारी अमिताभ ओझा ने कहा कि प्रेमचंद हिंदी के यथार्थवादी परंपरा के सबसे बड़े प्रवर्तक और उन्नायक हैं। उनके सामने हिंदी की इस उज्ज्वल परंपरा को उस किस्सागोई में ढालने की चुनौती थी, जिससे देश और समाज के इस यथार्थ को सटीक अभिव्यक्ति मिल सके। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने तिलस्म और ऐय्यारी प्रधान लोकप्रिय कहानियों तथा उपन्यासों के अपने ज्ञान और अध्ययन को एक प्रविधि के रूप में इस्तेमाल कर एक नई भाषाशिल्प और कथा संवेदना की संरचना खड़ी की।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. मुश्ताक अली ने कहा कि प्रेमचंद के साहित्य में स्वानुभूति, समानभूति और सहानभूति के मूल स्वर विद्यमान हैं। प्रेमचंद के साहित्य का अत्यंत वृहद आयाम है और आज के विमर्श तक पहुँचकर प्रेमचंद की सूरत वैसी नहीं रह जाती, जैसी 1914 में थी। प्रेमचंद के साहित्य में इतना स्पेस है कि उसकी आलोचना के साथ-साथ प्रत्यालोचना भी की जाती है। दूसरे दशक में गाँधीवादी आदर्श से प्रारंभ उनके साहित्य की कथावस्तु चौथे दशक में महाजनी सभ्यता की क्रूर विसंगतियों की गाथा बन जाती है। वस्तुत: उनके उपन्यास 'रंगभूमि' में सूरदास के संघर्ष का पराभव गाँधीवादी मूल्यों के पराभव की कहानी है। कालांतर में प्रेमचंद यह मानने लगे थे कि हृदय परिवर्तन का प्रतिफलन इतना आसान और सहज नहीं है। प्रेमचंद का साहित्य हिंदी में दलित चेतना और नारी विमर्श का वास्तविक उद्गम है। उन्होंने नवजागरण युग के विधवा विवाह जैसे सवाल को साहित्यिक चेतना से जोड़ा। प्रो. मुश्ताक अली ने प्रेमचंद के विभिन्न कहानियों और उपन्यासों के कथासार पर विस्तृत चर्चा की।
गोष्ठी को संबोधित करते हुए सेवानिवृत्त मुख्य कार्मिक अधिकारी ओम प्रकाश मिश्र ने कहा कि प्रेमचंद किसी वाद या राजनैतिक विचारधारा से नहीं जुड़े थे। गाँधीवादी अर्थनीति और प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों के कथानक में समन्वय और सामंजस्य का सुर था। उन्होंने ब्रिटिश राज की अंग्रेजी शिक्षा नीति का तीव्र विरोध किया तथा ईदगाह, ठाकुर का कुंआ और सद्गति जैसी कहानियों में जड़तावादी मान्यताओं पर प्रहार किया।
इस क्रम में प्रधान मुख्य वाणिज्य प्रबंधक एम. एन. ओझा ने कहा कि प्रेमचंद यथार्थवादी उपन्यासकार नहीं थे। यथार्थवाद विषमताओं और विकृतियों का नग्न चित्रण होता है, इसलिए रचनाओं में इसका हूबहू चित्रण नहीं किया जा सकता। इसलिए प्रेमचंद ने ऐसे साहित्य का प्रणयन किया, जो आदर्श की ओर उन्मुख हो, लेकिन हकीकत से दूर न हो। यही प्रेमचंद के आदर्शोंन्मुख यथार्थवाद की परिभाषा है। प्रेमचंद के उपन्यास और कहानियां कर्म सौंदर्य की मीमांसा है। 1936 में लखनऊ में आयोजित प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए प्रेमचंद ने साहित्य की कसौटी को बदलने का आह्वान किया था। उनकी बहुचर्चित कहानी 'कफन' शोषण, अन्याय एवं गरीबी तथा उससे उपजे अकर्मण्यता और किंकर्तव्यविमूढ़ता के अंतहीन दुष्चक्र की कहानी है। प्रेमचंद का किसान ब्रिटिश साम्राज्यवाद और देशी सामंतवाद के बीच पिस कर अपनी नियति को जैसे स्वीकार कर लेता है। शोषण तंत्र के अलंबरदार सीधे अंग्रेज नहीं हैं, बल्कि इनके भारतीय बिचौलिए हैं। गोदान की कहानी पछाड़ खाकर गिरते कृषक की कहानी है। ओझा ने कहा कि गोदान का नायक वह सीमांत किसान होरी जो गाँव से शहर की ओर जाने वाली सड़क पर मजदूर बनने के लिए विवश हुआ था, आज शहर में मजदूरी की तलाश कर रहा है।
संगोष्ठी में अपर महाप्रबंधक अरुण मलिक सहित सभी प्रधान विभागाध्यक्ष सहित बड़ी संख्या में अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित थे। इस अवसर पर प्रेमचंद के जीवन, लेखन और साहित्य कर्म से संबंधित चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई।