लखनऊ। उत्तर प्रदेश पुलिस की लापरवाही योगी सरकार पर धब्बा लगाती जा रही है। पुलिस की असफलता और उसके बाद छिपाने की प्रवृत्ति के चलते स्थिति और बद से बदतर होती जा रही है। किसी मामले में जांच कर तह तक जाने की बजाय यूपी पुलिस उक्त मामले को ही झुठलाने में जुट जाती है, जिससे अपराधियों को अपराध करने का पूरा मौका मिल जाता है। पिछले एक महीने के अंदर कई बड़ी घटनाओं से भी पुलिस और आला अधिकारी सबक लेने को तैयार नहीं हैं। किसी मामले में कार्रवाई तभी होती है, जब किसी बड़े या प्रभावशाली व्यक्ति का फोन आये। कुशीनगर के तुर्कपट्टी थाने के बैरागी गांव की मस्जिद में हुए विस्फोट मामले में भी स्थानीय पुलिस बैटरी विस्फोट का दावा करती रही। जब फोरेंसिक और एटीएस जांच हुई तब विस्फोट का खुलासा हुआ, अन्यथा स्थानीय पुलिस ने तो सबकुछ लीप-पोत दिया दिया था। इस मामले में मौलवी समेत चार लोगों को अरेस्ट किया है, लेकिन मुख्य आरोपी हाजी कुतुबद्दीन फरार है। ऐसे ही बिजनौर जिले के बास्टा इलाके में मंगलवार की रात एक बंद पड़े मकान में विस्फोट होने एक तथाकथित चोर विस्फोट होने से मर गया। बताया जा रहा है कि उस मकान में विस्फोटक रखा हुआ था। वहीं स्थानीय पुलिस इस मामले को छुपाने के लिये बताती रही कि चोर देशी बम लेकर आया था, उसी के फटने से यह हादसा हुआ। एटीएस ने इस गंभीरता से लिया है। कमलेश तिवारी मामले में भी यूपी पुलिस की लापरवाही पूरी सरकार पर धब्बा बन गई। कमलेश के दोनों हत्यारों की पहचान जाहिर होने और लोकेशन मिलने के बावजूद यूपी पुलिस हाथ मलती रह गई। इसके पहले कमलेश ने पुलिस ने सुरक्षा की मांग कर रखी थी, लेकिन अधिकारियों के कान पर कोई जूं नहीं रेंगी। सोनभद्र के उभ्भा गांव में भी सूचना दिये जाने के बावजूद पुलिस मौके पर नहीं पहुंची, जिसके चलते 11 लोगों की हत्या कर दी गई। इस घटना ने कानून-व्यवस्था के मसले पर सरकार को बैकफुट पर ढकेल दिया। प्रदेश की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि पुलिस के अधिकारी कभी भी अपना सीयूजी या मोबाइल नहीं उठाते हैं। जब इस संदर्भ में एडीजी लॉ एंड आर्डर वीपी रामाशस्त्री तथा आईजी लॉ एंड आर्डर प्रवीण कुमार त्रिपाठी ने फोन किये जाने के बाद भी फोन रिसीव नहीं किया। ना ही उनके किसी प्रतिनिधि ने फोन रिसीव किया। मैसेज छोड़े जाने के बाद भी दोनों में से किसी ने वापस कॉल करना मुनासिब नहीं समझा।
पुलिस की लापरवाही सरकार पर धब्बा ?